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राजनीती में जातिवाद

jantantra ki awaj
jantantra ki awaj
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राजनीती में जातिवाद का आतंक देखते हुए मुझे बहुत हैरानी हो रही है की वर्त्तमान समय में लोकतंत्र केवल जातिवाद बनकर रह गया है एक गीत को देखते हुए की
ऐ मेरे प्यारे वतन
ऐ मेरे बिछुड़े चमन
मुझको तुझपर नाज है
यह गीत किसी सच्चे देशप्रेमी के द्वारा गाया गया है वर्त्तमान समय में यदि देश के राजनीतिज्ञ केवल देशभक्ति को लेकर चले तो जातिवाद की समस्या ही उत्पन्न नहीं होगी लेकिन स्थिति बिलकुल विपरीत है वर्त्तमान समय में नेता लोग यह कहकर वोट बटोरते है की यदि हम चुनाव में जीत गए तो हम अपनी जाती और अपने शेत्र का भरपूर विकास करेंगे और अपनी जाती के लोगो को नौकरियों में आरक्षण देंगे और सामाजिक सुख सुविधाओं में कमी नहीं आने देंगे चुनाव में जीत जाने पर राजनीतिक शेत्र में भी अपनी ही जाती के लोगो को प्रवेश देंगे यह कथन हर जाती वर्ग पर लागु होता है चाहे वह अनुसूचित जाती और जनजाति का प्रतिनिधि हो या मुस्लिम वर्ग का प्रतिनिधि हो या किसी अन्य जाती वर्ग का सभी का यही हाल है इस तरह देश में चुनाव लोकतंत्र न रहकर केवल जाती तंत्र बनकर रह गया यह कहना atishayokti नहीं hoga की देश में जाती dharm के naam पर आतंरिक बटवारा हो raha है isme yahan की janta भी doshi है yahan की janta को jagruk hona चाहिए अपना अपना स्वार्थ न देखते हुए देश के बारे में सोचना चाहिए क्योंकि यह आतंरिक बटवारा कभी विकराल रूप धारण कर सकता है वह दिन दूर नहीं जब इसी तरह देश पहले जातिवाद में बटेगा फिर अलग अलग जाती के अलग अलग राज्य बन जायेंगे और अलग अलग राज्यों में जाती के आधार पर अलग अलग नियमकानून बनने लगेंगे फिर धीरे धीरे राजतन्त्र शुरू हो जायेगा इससे देश टुकरों में बट जाएगा और देश की आतंरिक शक्ति कमजोर होती चली जाएगी फिर कोई बाहरी मुल्क आक्रमण करके देश को नुक्सान पहुचाने लगेगा और धीरे धीरे वही पुरानी स्थिति आ जाएगी जो आजादी से पहले की स्थिति थी अर्थात धीरे धीरे देश गुलामी की कगार पर आ सकता है अंत में में यही कहना चाहूंगी की राजनीतिक दलों को जातिवाद अपना हथियार नहीं बनाना चाहिए
देशहित पर smt पुष्पा पाण्डेय

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