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भारतीय राजनीती में सुधार कांटेस्ट

jantantra ki awaj
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अंधेरनगरी चौपट राजनीती
यही हाल है वर्त्तमान में भारत की राजनीती का
वर्त्तमान समय में राजनीती का स्वरुप बिगड़ता ही चला जा रहा है यह न तो चाणक्य नीति पर निर्भर है और न ही विदुर नीति पर वर्त्तमान समय में इसका स्वरुप भेडनीति बनकर रह गया है कहने का तात्पर्य यह है की वर्त्तमान समय में राजनीती एक विरासत बनकर रह गयी है अर्थात राजनीतिज्ञों के वंशज ही राजनीती में आते है समाज में यदि कोई व्यक्ति गरीब है और उसमे एक अच्छे राजनीतिग्य के सभी लक्षण है और वह अच्छे आचरण तथा संस्कारी व्यक्ति है लेकिन निर्धन और बहुचर्चित न होने के कारण वह देश सेवा से वंचित रह जाता है वह मन ही मन सोचता है की हमारे देश में किस तरह गलत आचार विचार वाले व्यक्ति देश की सत्ता सम्भाल रहे हैं और देश बर्बादी की कगार पर जा रहा है वह चाहते हुए भी किसी से कुछ नहीं कह पाता क्योंकि वह जानता है की राजनीती में ticket खरीदने के लिए धनबल और बाहुबल की आवश्यकता है या अति विशिस्ट व्यक्ति होना जरुरी है आजादी से पहले ऐसा कुछ नहीं था क्योंकि उस समय अंग्रेजो का राज था और भारतीयों की स्थिति खूंटे से बधे हुए जानवर की तरह थी ऐसे समय में कुछ ही दिलेर और बहादुर देशभक्तों ने आजादी के लिए आवाज उठाई और अंग्रेजो द्वारा दी गयी यातनाएँ भी सही जिन्हें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का नाम दिया गया काफी संघर्ष करने के बाद जब १९४७ में आज़ादी मिली तब साफ़ सुथरी छवि वाले नेता सामने उभर कर आये और उन्होंने एक साफ़ सुथरी और निष्पक्ष राजनीती का निर्माण किया साथ ही सबको समान अधिकार और आज़ादी का भरपूर लाभ उठाने वाला लचीला और धर्मनिरपेक्ष कानून बनाया जिसको वर्त्तमान समय के कुछ भ्रस्त राजनीतिज्ञों ने दूषित कर दिया है क्योंकि इन्हें साफ़ सुथरी और स्वाधीनता की हवा में सास लेने को मिला है यदि इन्होने गुलामी के डंडे खाए होते और अंग्रेजो के कठोर कारावास में सास ली होती तो शायद ये समझ पाते की हमारे देश के शहीदों ने किस तरह कठोर परिश्रम करके देश को आजाद किया उन्होंने कभी अपना स्वार्थ नहीं देखा और धनाभाव में रहे अंग्रेजो द्वारा दी गयी सुख सुविधाओं को ठोकर मारकर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े जिसका वर्त्तमान समय के नेताओं ने भरपूर फायदा उठाते हुए देश की संपत्ति पर अपना कब्ज़ा जमा लिया है और जनता की मेहनत का पैसा अपनी सुख सुविधाओं में लगाया है जबकि महात्मा गाँधी जी और शास्त्री जी तथा नेहरु जी जैसे नेताओं ने कभी देश का पैसा अपने हित में खर्च नहीं किया हमेशा देश और देशवासियों के विषय में ही सोचते रहे यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा की वर्त्तमान समय में राजनीती में एक दुसरे पर दुर्व्यवहार भी होता है चंद पंक्तियों द्वारा इस दूषित राजनीती का वर्णन कर रही हूँ
मारो thappar फेको चप्पल पोतो कालिख फेको श्याई
मूक बधिर है सत्तादल न्याय की हो गयी खूब घिसाई
भोली जनता समझ न पाई लोकतंत्र की हुई पिटाई
देशहित में श्रीमती पुष्पा पाण्डेय

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