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विवाह में जाती बंधन पारिवारिक बंधन सामाजिक बंधन अनेतिक लेखिका श्रीमती पुष्पा पाण्डेय

jantantra ki awaj
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ख़ुशी ख़ुशी कर दो विदा
की रानी बेटी राज करेगी
अरे रानी बेटी राज करेगी कहाँ से जब उसके उप्पर अधिक दहेज़ लाने के लिए आये दिन दुर्व्यवहार किया जाता हैतरह तरह की यातनाएं दी जा रही हैं ऐसा इसलिए हो रहा है की एक बेटी ने अपने परिवार समाज और जाती की मर्यादाओं को कायम रखा है अपने अरमानो का गला घोटकर सबके मान सम्मान का ध्यान रखा है यदि वह अपने पसंद के किसी लड़के से जो अच्छे व्यक्तित्व वाला है दहेज़ विरोधी है और रोजगारपरक है अपने परिवार को पालने लायक है लेकिन चूँकि वह लड़की के परिवार वालो के अनुरूप जाती में गोत्र में और उसके समाज से मेल नहीं खाता है तो लड़की को तरह तरह के ताने सुनने पड़ते हैं इसमें परिवार तो रहा दूर समाज और सम्बन्धी मित्रगण सभी लोग तरह तरह की आलोचनाएं करने से नहीं चुकते ऐसे में मजबूर होकर लड़की चुपचाप समाज और परिवार तथा सगे सम्बन्धियों द्वारा चुने गए वर को ही अपना सबकुछ समझकर विवाह कर लेती है वह तो सबका इतना ध्यान रखती है लेकिन यह समाज परिवार इतना क्रूर होता होता है की उसको ससुराल की तरफ से दी जाने वाली यातनाओं को नजर अंदाज कर देता है और उससे कह दिया जाता है की अब चाहे मरो या बचो तुम्हारा सबकुछ वही है यह तो रहा दूर इतना कह दिया जाता है की पिता के घर से डोली निकलती है अर्थी ससुराल से निकलती है बहुत कम परिवार ऐसे होते है जो बेटी को सहयोग देते हैं प्रेम विवाह कर लेने में तो यह भी असंभव हो जाता है कहने का तात्पर्य यह है की यदि समाज परिवार और सगे सम्बन्धी मनपसंद विवाह अर्थात प्रेम विवाह को मान्यता देते हुए लड़के लड़कियों का साथ दें और उस विवाह को arrange marriage का ही रूप देकर यदि दोनों पक्षों के परिवार वाले सामाजिक तोर पर इस विवाह को कर दे तो काफी हद तक दहेज़ प्रथा का अंत हो सकता है और पिताओं की पगड़ी paro में आने से बच जायेगी
समाज हित में लेखिका पुष्पा पाण्डेय

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