Menu
blogid : 9555 postid : 84

बत्तीसी और बेचारी जीभ

jantantra ki awaj
jantantra ki awaj
  • 30 Posts
  • 87 Comments

ज्यादा तीन पांच करोगे तो बत्तीसी बाहर निकल जायेगी अक्सर लड़ाई झगडे में यह शब्द झगड़ने वालों के मुह से निकल ही जाते हैं पर कभी किसी ने सोचा भी है की बेचारी जीभ इन तेज धार वाले बत्तीस दाँतों के बिच में कैसे रहती है ठीक वैसे जैसे बत्तीस करोड़ तीखे कटाक्ष करने वाले नेता जनता बाबाओं के बिच प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी बेचारी जीभ बत्तीस दाँतों के बिच में कभी कभी कट भी जाती है लेकिन उफ तक नहीं करती जीभ को धारण करने वाला जीव सभी स्वादों का मजा लेता रहता है ठीक उसी तरह जिस तरह श्री मनमोहन सिंह जी मुरख मंच के मूर्खो का कटाक्ष सुनकर धीर गंभीर होकर देशहित में कार्य करते जा रहे हैं और निकम्बी जनता खूब खा खा कर बैठे बैठे अनाप शनाप बतिया रही है यह तो कोई जीभ से सीखे की बत्तीसी के बिच में रहकर कैसे बचना है और कार्य करते रहना है प्रधानमंत्री जी आप भी बत्तीस करोड़ मूर्खो जिसमे बकवास मारने वाले बाबाओं भ्रष्ट नेताओं और कुछ निम्न तबके के विचार वाली जनता से बचकर रहते हुए देशहित में कार्य करते रहिये आजादी की हवा में सांस लेने वाले ये निठल्ले क्या जाने की नेहरु जी ने अय्याशी की थी या अंग्रेजो के डंडे खाए थे आजादी पाने के लिए शहीदों ने कितने पापड़ बेले थे यह मुरखमंच के लोग क्या जानें इ जनता तो ऐसी है चित्त भी मेरी पट्ट भी मेरी सब ही अपने अपने राग अलाप रहे हैं अपनी अपनी ढपली अपना अपना राग इ कहावत स्वार्थी जनता पर लागु होती है जिसके मन की न करो वही चप्पल बरसाए है तो में कह रही थी बेचारी जीभ की बात कहाँ इन मूरखो के मंच में गलती से आ गयी माना की दाँतों का काम चबाने का है और वह चेहरे की शोभा भी बढ़ाते हैं लेकिन कोई तरल पदार्थ और पानी पीते समय दाँतों का कोई काम नहीं होता चाहे खाना हो या पीना या बोलना जीभ को हर कार्य में शामिल होना पढता है लेकिन स्वाद कड़वा होने पर जीभ उसे मुह से निकालकर बाहर कर देती है लेकिन कभी कभी जीवित रहने के लिए मज़बूरी में कडवी दवाई भी जीभ को निगलनी पड़ती है ठीक उसी तरह प्रधानमंत्री जी को भी कुछ गलत किस्म के लोग समय को देखते हुए निभाने पड़ते हैं गबन हो या घोटाला आतंक हो या आरक्षण विरोध हड़ताल हो या अनशन मुरखमंच की इन सभी गतिविधियों को प्रधानमंत्री जी झेल रहे हैं और गंभीरता से अपनी नीतियों को सुलझा रहे हैं इ देश की जनता ही नहीं समझ पा रही है तो विदेशी लोग क्या समझेंगे इ नमकहराम नालायक और स्वार्थी जनता जब एक बार फिर गुलाम हो जायेगी तभी समझेगी की क्या सही था और क्या गलत ताली एक हाथ से नाही बजत है ताली बजान में दोनों हाथन की हथेलियाँ काम आत हैं मिलजुलकर ही समस्याएँ सुलझाई जात हैं एक दूजे पर chintakasi करन से कुछ हाथ नाही आन वालो है राजा प्रजा दोनों को ही सुधरना होगा तभी देश की मान मर्यादा कायम रख सकना संभव है
होई वही जो राम रची राखा
जो जस कर्म करेउ फल चाखा
आज बस इतना ही
श्रीमती पुष्पा पाण्डेय

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply